राष्ट्र-भक्ति के अमर सिपाही,
हमको देश निहार रहा है।
हमको देश पुकार रहा है।
अब भी बहुत घना अंधियारा, आंधी गरज – गरज कर चलती,
कूल कगारे चाट चाट कर, मदमाती है नदी उछलती,
साहस करके आगे आओ, जन जीवन हार रहा है।
हमको देश निहार रहा है।
हमको देश पुकार रहा है। ॥१॥
ढहते पर्वत मिलती झीलें, चट्टाने अब टूट रही हैं,
जीवन की हरियाली नीचे, विष की लपटें फूट रही हैं,
महानाश के रंगमंच पर, मानव को आधार कहाँ है।
हमको देश निहार रहा है।
हमको देश पुकार रहा है। ॥२॥
कुरुक्षेत्र में खड़ी हुई हैं, तीर चढ़ाये सब सेनाएँ,
पाञ्चजन्य भी गूँज उठा है, सहमी सहमी हुई दिशाएँ,
बढ़ो भरत-भू के सेनानी, गांडीव टंकार रहा है।
हमको देश निहार रहा है।
हमको देश पुकार रहा है। ॥३॥
जीवन मृत्यु लड़े हैं जब, विजयी सदा हुआ है जीवन,
चाहे धूल रुधिर से लथ पथ, चाहे घावों से जर्जर तन,
अन्तिम विजय हमारी होगी, रोम रोम हुँकार रहा है।
हमको देश निहार रहा है।
हमको देश पुकार रहा है। ॥४॥
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