हिन्दुत्व माने मानव धर्म। जीव मात्र का धर्म।
हिन्दुत्व या सनातन धर्म की बात करते हैं तो हमारा औदार्य सामने आता है:-
‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का।
‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ का।
सबको अपने जैसा देखो, चूंकि आप कुटुम्ब में हैं।
पूरा विश्व ही एक कुटुम्ब माना गया है-अग्नि, अंबर, जल, वायु, निहारिकाएं, नक्षत्र, जलचर, थलचर, नभचर, अण्डज, पिण्डज, स्वेदज, उद्बिज… जो दिखाई दे रहा है एक परिवार है।
तो जो दृश्यमान है, भासित है, कल्पित है, आरोपित है, विद्यमान है…वह सब ईश्वर है, और मनुष्य उसका हिस्सा है। तो मनुष्य सिर्फ दूसरे का हित करे, अहित पाप है।
अगर कोई किसी का हठात् धर्म छीन रहा है तो उसे पीड़ा ही तो पहुँचा रहा है।
आपके माध्यम से मैं एक बात कहूंगा कि इस धरती पर एक वातावरण बने कि बुद्धिजीवी, विचारक, मनीषी और पश्चिम के वे सभी तथाकथित लोग जो खुद को बड़ा उदार बता रहे हैं, अगर वे (पश्चिमी देश) इस धरती को आनंद देना चाहते हैं तो उनसे मेरी एक विनय है कि कन्वर्जन बंद करें।
जो जैसा है उसे वैसा ही रहने दें। फिर धरती पर कोई उपद्रव नहीं होगा।
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